Thursday 27 August 2015

आँसुओं की विडम्बना (irony of tears)

जीवन के हर मोड़ पर रहा मेरा ये सवाल,
कि हो चाहे जैसा भी हाल,
मनुष्य  अश्रुजल क्यों बहाते हैं? 
मन मौन रहा, अधर ख़ामोश रहे
सवाल वही रहा, जवाब हम ढूँढते रहे ।।

उसकी नयन सफ़र में ढूँढती रही कोई रेहनूमा,
अपनी तलाश में उसने अश्रु प्रवाहित किए।
अरे, मिला जब कोई दर्द बाँटने वाला उसे, तब भी ख़ुशी के नाम पर उसने सैलाब भर दिए।।

व्यथा सुनाने को ढूँढते किसी को उसके अधर,
सारा ज़हान घूमने पर मिल जाए कोई अगर,
फिर क्यों कहता वो कि दिल की बात तो है उसी में दबी, कितनी सूनी है ये डगर! 

हर प्रश्न का है होता कोई उत्तर , 
पर इस सवाल का क्यों नहीं? 
मनुष्य क्यों असंतुष्ट होकर रो देता है,
आख़िर ख़ुशी में भी क्यों दामन भिगो देता है? 
-ऋचा गुप्ता 

Friday 14 August 2015

Happy Independence Day

🇮🇳माँ तुझे सलाम!🇮🇳
है जिसके प्रताप की साक्षी माँ गंगा
देते जिसकी करुणा का प्रमाण ये तारागण
ऐसा है भारत देश हमारा
करती जिसपर मैं सर्वस्व अर्पण !

अरे ओ आध्यात्मिकता के शिखर
ऋषि-मुनियों के तप की पवित्र डगर!
नैतिकता चूमती तेरा अंबर
है तेरी शान में गर्वोन्नत मेरा सर!

है हिम-किरीट तेरा मुकुट
और तन है सपाट मैदान
पवित्र नदियों के उद्गम स्थान 
करती मैं तेरा अथक सम्मान! 

है तेरी वायु में इतना अपनापन
की परदेसिओं का भी खिल जाता मन
है तेरी मिट्टी में ये कैसी शक्ति
जो आश्रित है तुझपर सैंकड़ों वनस्पति ?

तू थी ऐश्वर्य की प्रतिमा
'सोने की चिड़िया' उपाधि थी तेरी गरिमा!
बाहरी लुटेरों ने तुझे भरसक लूटा है,
मैं जानती हूँ तेरा मनोबल टूटा है!

तेरा आशीष मिले तो हम संगठन से आगे बढ़ेंगे 
प्रतिबद्धता और दृढ़ता के दम पर 
हर रण से जीतकर लौटेंगे!
तेरे हर रत्न को हम पुन: भर ले आएँगे,
जन्मे हैं हम तेरी अंक में ये सबको दिखलाएँगे!

-ऋचा गुप्ता