Thursday 27 August 2015

आँसुओं की विडम्बना (irony of tears)

जीवन के हर मोड़ पर रहा मेरा ये सवाल,
कि हो चाहे जैसा भी हाल,
मनुष्य  अश्रुजल क्यों बहाते हैं? 
मन मौन रहा, अधर ख़ामोश रहे
सवाल वही रहा, जवाब हम ढूँढते रहे ।।

उसकी नयन सफ़र में ढूँढती रही कोई रेहनूमा,
अपनी तलाश में उसने अश्रु प्रवाहित किए।
अरे, मिला जब कोई दर्द बाँटने वाला उसे, तब भी ख़ुशी के नाम पर उसने सैलाब भर दिए।।

व्यथा सुनाने को ढूँढते किसी को उसके अधर,
सारा ज़हान घूमने पर मिल जाए कोई अगर,
फिर क्यों कहता वो कि दिल की बात तो है उसी में दबी, कितनी सूनी है ये डगर! 

हर प्रश्न का है होता कोई उत्तर , 
पर इस सवाल का क्यों नहीं? 
मनुष्य क्यों असंतुष्ट होकर रो देता है,
आख़िर ख़ुशी में भी क्यों दामन भिगो देता है? 
-ऋचा गुप्ता 

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